क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान था? What was the contribution of revolutionary batukeswar Dutt in the Indian freedom struggle?

 


[18/11, 2:19 am] sr8741002@gmail.com: 

Batukeswar dutt 

महान क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को ओँयाड़ि ग्राम, बर्धमान जिले बंगाल में हुआ। बटुकेश्वर दत्त भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त को देश ने सबसे पहले 8अप्रैल 1929 को जाना,जब वे भगत सिंह के साथ केन्द्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होनें आगरा में स्वतंत्रता आन्दोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था। उन्होंने बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रान्त के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। उनकी स्नातक स्तरीय शिक्षा पी॰पी॰एन॰ कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई। 1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुँचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।‌इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहाँ पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।

भारत की स्वतंत्रता के बाद नवम्बर, 1947 में उन्होंने अंजलि दत्त से विवाह करने के बाद वे पटना में रहने लगे। बिहार विधान परिषद ने बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव 1963 में प्राप्त किया। दत्त की मृत्यु 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। भगतसिंह ने अपनी मां से कहा था।कि मृत्यु के बाद मेरी आत्मा बट्टुकेश्वर में  रहेगी जब दत्त बीमार हुए तो भगतसिंह की मां ने उनके इलाज के लिए चंदा इकट्ठा किया और दिल्ली एम्स में इलाज करवाया और तीरमदारी भी की। मृत्यु के बाद उनका दाह संस्कार उनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। इनकी एक पुत्री भारती बागची पटना में रहती हैं। बटुकेश्वर दत्त के विधान परिषद में सहयोगी रहे इन्द्र कुमार कहते हैं कि 'स्व॰ दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित्त एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्तित रहने वाले क्रांतिकारी थे। उनको आजीवन इस बात का मलाल रहा कि उनको भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी क्यों नहीं दी गयी। मातृभूमि के लिए इस तरह का जज्बा रखने वाले नौजवानों का इतिहास भारतवर्ष के अलावा किसी अन्य देश के इतिहास में उपलब्ध नहीं है।

प्रमुख योगदान:

केन्द्रीय विधान सभा में बम विस्फोट (1929): बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने तत्कालीन सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था।

"इंकलाब जिंदाबाद" का नारा: उन्होंने पर्चे बांटे और "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा लगाते हुए गिरफ्तारी दी, ताकि जनता को जागरूक कर सकें।

भगत सिंह के साथी: दत्त भगत सिंह के सबसे करीबी साथियों में से थे और उन्होंने कानपुर में चंद्रशेखर आजाद के साथ काम करते हुए दोस्ती की।

जेल में विरोध: जेल में भारतीय कैदियों के साथ होने वाले भेदभाव और अमानवीय व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल की, जिससे उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ा।

भारत छोड़ो आंदोलन: 1942 में गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।

स्वतंत्रता के बाद का संघर्ष: आजादी के बाद, एक स्वतंत्रता सेनानी होने के बावजूद, उन्हें सरकार से सहायता नहीं मिली और उन्होंने एक सिगरेट कंपनी में एजेंट के रूप में काम करके अपनी आजीविका चलाई। बाद में उन्होंने एक छोटा सा बिस्किट कारखाना भी खोला, जो नुकसान के कारण बंद हो गया।
अंतिम इच्छा: उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि के बगल में हुसैनीवाला में किया जाए, जिसे पूरा किया गया।



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