चिपको वुमन गौरा देवी का पर्यावरण संरक्षण में कैसा योगदान रहा?What was the contribution of chipko woman Gora Devi in Environmetal protection?

 


गौरा देवी का जन्म 25अक्टूबर 1925 को उत्तराखंड के लाता गांव में हुआ था।1970 में उत्तराखंड में पर्यावरण बचाने का एक मिसाल अभियान चला, जिसका नेतृत्व चमोली जिले के रैणी गांव की गौरा देवी ने किया, गौरा देवी की शादी 12 साल की उम्र में हुई और 22 साल की उम्र में वह विधवा हो गईं, जब उनके पास डेढ़ साल का बच्चा था, नन्हे बच्चे और बूढ़े सास-ससुर की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर थी, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पर्यावरण सेवा में अपना योगदान दिया,वह घास काटकर और थोड़ी-बहुत खेती करके अपने परिवार का पालन-पोषण करती थीं,1970 के दशक की बात है, जब गांव के 2400 पेड़ काटने के लिए मजदूर आए, तब गांव में कोई भी पुरुष मौजूद नहीं था, उस वक्त गौरा देवी ने महिलाओं का नेतृत्व किया और वे सब मिलकर पेड़ों से चिपक गईं, उन्होंने मजदूरों से कहा, "अगर इन पेड़ों को काटना है, तो पहले हमें ही काटना पड़ेगा,


महिलाओं के साहस को देखकर मजदूर पीछे हट गए और बिना पेड़ काटे वापस चले गए, इस घटना के बाद गौरा देवी का नाम उत्तराखंड में चिपको आंदोलन की हीरोइन के रूप में जाना गया, आज देहरादून में जब भी पेड़ों के संरक्षण के लिए लोग सड़कों पर उतरते हैं, तो गौरा देवी और उनके चिपको आंदोलन की छाप साफ नजर आती है,

गौरा देवी ने औपचारिक शिक्षा तो नहीं ली, लेकिन अपने साहस और मजबूत इरादों से इतिहास बना दिया,बचपन से ही गौरा देवी का जीवन संघर्ष से भरा रहा,  उनके पास कोई बड़ी पूंजी नहीं थी, बस कुछ पशु थे, उन्होंने पशुपालन, ऊनी हस्तशिल्प और छोटे खेत पर खेती करके अपने परिवार का पालन-पोषण किया,


जिंदगी में कई संघर्षों के बावजूद गौरा देवी ने हार नहीं मानी,साल 1972 में रैणी गांव की 'महिला मंगल दल' की अध्यक्षा चुनी गईं, इसके बाद उन्होंने सामुदायिक वनों के संरक्षण पर काम किया। उन्हें 'चिपको आंदोलन की जननी' और 'चिपको वुमन' के नाम से विश्वभर में जाना गया, साल 1974 में जब ठेकेदार और मजदूर ऋषिगंगा के पास देवदार के जंगल काटने आए, और गांव में कोई भी पुरुष नहीं था,तब गौरा देवी ने अन्य महिलाओं को संगठित करके चिपको आंदोलन की शुरुआत की और जंगल बचाने के लिए संघर्ष किया, उनके इस योगदान को याद करते हुए उत्तराखंड सरकार ने 'गौरा देवी कन्या धन योजना' शुरू की साथ ही, चमोली में हर साल 5 और 6 जून को गौरा देवी पर्यावरण पर्यटन मेला भी आयोजित किया जाता है, उत्तराखंड की प्रमुख पर्यावरणविद् गौरा देवी को 1986 में चिपको आंदोलन में उनके असाधारण योगदान के लिए 'वृक्ष मित्र' पुरस्कार मिला ।  चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी को 2016 में उत्तराखंड रत्न सम्मान मिला था, गौरा देवी के नाम से  उत्तराखंड में निम्न योजनायें चलती हैं।

महिला रोजगार योजना

विधवा कल्याण योजना

गौरा कन्याधन योजना

पर्यावरण बचाओ योजना

इस प्रकार से गौरा देवी ने जंगलों को इस प्रकार के कटान से पर्यावरण को कितना बड़ा नुक्सान होता है।इस सम्बंध में जन जागरण किया,और स्वयं पेड़ों पर चिपक गयी,कि पेड़ों को काटने से पहले मुझे काटना होगा।यह पर्यावरण संरक्षण हेतु एक बहुत बड़ा जागरण व प्रेरणा थी।




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