उत्तरकाशी धराली में आयी दैवीय आपदा में बादल फटा? या ग्लेशियर टूटा? Uttarakashi Dhrali Natural Disaster
[10/08, 6:34 am] sr8741002@gmail.com: उत्तरकाशी में बादल फटने के बाद या ग्लेशियर टूटने से आई तबाही,
उत्तराखंड के धराली गांव में बादल फटने के बाद आई बाढ़ ने तबाही मचाई। कई घर और होटल कीचड़ और मलबे में दफन हो गए। सड़कें और पूल टूट गए। इस हादसे के बाद की सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई हैं।
उत्तराखंड के धराली गांव में मंगलवार को आई अचानक बाढ़ ने तबाही मचा दी। कीचड़ और मलबे ने पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे इमारतें, सड़कें, पेड़ और खेत-खलिहान दफन हो गए। सैटेलाइट तस्वीरों ने इस भयावह मंजर को कैद किया है, जो इस आपदा की गंभीरता को बयां करती हैं।
गांव पर मंडराया मलबे का साया
नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की तस्वीरें बताती हैं कि खीर गंगा नदी के रास्ते में आए सैलाब ने धराली गांव को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। मलबे ने भागीरथी नदी के एक बड़े हिस्से को भी अवरुद्ध कर दिया, जिससे नदी का रास्ता बंद हो गया। 13 जून और 7 अगस्त की तस्वीरों में साफ दिखता है कि एक पुल और बाग-बगीचे भी पानी और कीचड़ में डूब गए।
ग्लेशियर टूटने की आशंका
एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह तबाही खीर गंगा नदी के ऊपरी हिस्से में ग्लेशियर के टूटने से शुरू हुई होगी। भारतीय विज्ञान संस्थान के डिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के विशिष्ट वैज्ञानिक अनिल कुलकर्णी ने बताया, 'सितंबर 2022 की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि खीर गंगा नदी का उद्गम ग्लेशियरों से होता है। उस समय बर्फ पिघल चुकी थी, जिससे ग्लेशियर और जमीन की बनावट साफ दिख रही थी।'
उन्होंने आगे कहा, "ग्लेशियर का बर्फीला हिस्सा अब बहुत छोटा रह गया है, लेकिन एक विशाल डीग्लेशियेटेड घाटी दिखाई देती है। इस घाटी के मुहाने पर मिट्टी और चट्टानों का मलबा (मोरेन) जमा है, जिसके बीच से एक छोटी नदी बहती है। इस मोरेन के पीछे सपाट जमीन और पुरानी झील के निशान भी दिखते हैं।"झील के फटने से बिगड़ा खेल
कुलकर्णी के मुताबिक, मोरेन के मलबे ने पिघलती बर्फ के पानी को रोककर एक अस्थायी झील बना दी होगी। इस झील के फटने से भारी मात्रा में पानी और मलबा खीर गंगा नदी में बहकर धराली गांव तक पहुंचा। उन्होंने कहा कि यह बाढ़ और कीचड़ का सैलाब उसी झील के फटने का नतीजा हो सकता है।
पहले भी दिखे थे संकेत
एक्सपर्ट्स ने बताया कि खीर गंगा नदी के रास्ते में पहले भी बाढ़ के निशान मिले हैं, लेकिन इस बार की तबाही का पैमाना अभूतपूर्व है। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) के सलाहकार साफी अहसान रिजवी ने बताया, "हाल के दिनों में ऊपरी इलाकों में भारी बारिश ने मलबे को ढीला कर दिया। 6,700 मीटर की ऊंचाई पर ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटा, जिससे पानी और मलबा तेजी से नीचे की ओर बहा।"
हिमालय की जोखिम भरी झीलें
रिजवी ने आगे कहा, '2023 के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के एटलस के अनुसार, हिमालय में 7,500 से ज्यादा ग्लेशियल झीलें हैं, जिनमें से 195 को जोखिम भरा माना गया है। लेकिन धराली के आसपास की कोई भी झील इस सूची में शामिल नहीं थी।'NDMA के अधिकारी अब साफ मौसम का इंतजार कर रहे हैं ताकि सैटेलाइट तस्वीरें और स्पष्ट हो सकें। इन तस्वीरों से ग्लेशियर और नदी के व्यवहार को समझने में मदद मिलेगी। इस बीच, सैकड़ों लोग लापता हैं और प्रशासन राहत और बचाव कार्य में जुटा है।
[10/08, 6:45 am] sr8741002@gmail.com: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में आई दैवीय आपदा बादल फटने से नहीं हुई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आपदा ग्लेशियर के टूटने या ग्लेशियर झील के फटने से आई थी। मौसम विभाग के अनुसार आपदा के समय बारिश बहुत कम हुई थी, जो बादल फटने की घटना के लिए पर्याप्त नहीं थी
आपदा के कारण-
ग्लेशियर या ग्लेशियर झील का फटना : विशेषज्ञों का कहना है कि धराली में आई बाढ़ ऊपर की ओर किसी ग्लेशियर के टूटने या ग्लेशियर झील के फटने से आई।
कम बारिश : मौसम विभाग ने बताया कि आपदा के समय हर्षिल में सिर्फ 6.5 मिमी बारिश हुई थी, जो बादल फटने के लिए बहुत कम है।
-सैटेलाइट तस्वीरें: सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि इलाके के ऊपर कई ग्लेशियर झीलें हैं।
इस दैवीय आपदा में राहत और बचाव कार्य में शासन प्रशासन, विविध संगठन सहयोग कर रहे हैं।अभी तक शासन की ओर से 1150 से अधिक लोगों को रेस्क्यू करके सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा चुका है। उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में आयी दैवीय आपदा में राहत और बचाव कार्यों में शासन प्रशासन के साथ विभिन्न संगठन और भारतीय सेना सेवा कार्य कर रहे हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी सेवाएं दे रहे है।
उत्तराखंड में ग्लेशियर झीलों का खतरा
उत्तराखंड में 1,266 ग्लेशियर झीलें हैं, जिनमें से कुछ नीचे रहने वाले लोगों के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 13 ग्लेशियर झीलों को उच्च जोखिम वाली बताया है।