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Showing posts from July, 2025

कारगिल विजय दिवस भारतीय सैनिकों को सैल्यूट करता है Kargil Vijay Diwas

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  भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध की यह 26वीं वर्षगाँठ है। कारगिल युद्ध से पहले भारत और पाकिस्तान ने 1998 में दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण किए जाने के कारण उग्र माहौल बन गया था। और इस स्थिति को शांत करने के प्रयास में दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये। जिसमें कश्मीर संघर्ष का शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय समाधान प्रदान करने का वादा किया गया था।लेकिन पाकिस्तान 1998 की सर्दियों के दौरान ही सशस्त्र बलों को गुप्त रूप से पाकिस्तानी सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को प्रशिक्षण दे रहे थे। और उन को प्रशिक्षण देकर (एलओसी) नियंत्रण रेखा पार करके भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करा रहे थे।जिनमे आतंकवादी भी थे।पाकिस्तान के लगभग 5000 सैनिकों और आतंकवादियों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया था। एक भारतीय चरवाहे ने भारतीय सेना को इस घुसपैठ की सूचना दी। भारतीय सेना द्वारा चरवाहे से मिली जानकारी की जांच के लिए पेट्रोलिंग टीम भेजी गई।तो पांच भारतीय जवानों को पाकिस्तानी फौजियों ने पकड़ लिया और उनकी हत्या कर दी।पाकिस्तान की इस  हिमाकत के बाद युद्ध...

भारत की सीमा तिब्बत से लगती है न कि चीन से?India shares its border with Tibet and not with china?

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  नेरेटिव सेट करने के खेल में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू ने चीन को  उसी के स्टाइल में जवाब दिया। अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने गुरुवार को एक इंटरव्यू में कहा कि अरुणाचल प्रदेश की सीमा तिब्बत के साथ लगती है, न कि चीन के साथ पहली बार  उनका यह बयान अजूबा और गलत लग सकता है। हमें शुरू से ही बताया गया है कि पूर्व दिशा में भारत की लगभग 1200 किलोमीटर की सीमा चीन से लगती है, लेकिन इस तथ्य को अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने डिप्लोमेटिक ट्विस्ट दे दिया है। पेमा खांडू ने कहा कि भारत का अरुणाचल प्रदेश राज्य चीन के साथ नहीं बल्कि तिब्बत के साथ 1200 किलोमीटर की सीमा साझा करता है,पीटीआई के साथ इंटरव्यू में सीएम पेमा खांडू ने यह बयान तब दिया है जब दलाई लामा के बहाने तिब्बत चर्चा में है। इसके अलावा चीन कई बार अरुणाचल प्रदेश पर अपना अवैध बेबुनियाद दवा जताता रहता है, इस दावे की पुष्टि के लिए चीन एक तरफा तौर पर इस क्षेत्र के कई इलाकों के नाम बदलता रहता है। आपकी गलती ठीक कर दूं  इंटरव्यू के दौरान जब उन्हें बताया गया कि अरुणाचल प्रदेश की 1200 किलोमीटर की सीमा ची...

1857 की क्रांति के नायक मंडल पांडे ने विद्रोह क्यों किया?Mangal pandye

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  1857 के विद्रोह की शुरुआत 29 मार्च को हुई थी।  इस विद्रोह के नायक और स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे थे। आज  के दिन पूरा देश उनको याद करता है। 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्मे मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को बंगाल की बैरकपुर छावनी में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। 1857 की क्रांति के पीछे कारतूस ने अहम भूमिका निभाई थी। दरअसल जो एनफील्ड बंदूक थी। उसमें कारतूस भरने के लिए दांतो का इस्तेमाल करना पड़ता था। पहले कारतूस को काटकर खोलना पड़ता था और उसके बाद उसमें भरे हुए बारूद को बंदूक की नली में भरकर कारतूस को डालना पड़ता था।पानी की सीलन से बचाने के लिए कारतूस के बाहर चर्बी लगी होती थी।सिपाहियों में यह  अफवाह फैल गई थी। कि कारतूस में लगी चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनाई जाती है। ऐसे में सिपाहियों को लगा  कि अंग्रेज़ उनका धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं। इसी मुद्दे को आधार बनाते हुए बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजा दिया। छावनी के परेड ग्राउंड में मंगल पांडे ने दो अंग्रेज अफसरों को गोली मार दी।इसके बाद मंगल पां...

हरेला 2025 की थीम क्या है Harela 2025 Theem

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  जी रंया जागी रंया  फूल जस खिलना रंया  हरेला सिर्फ एक त्योहार न होकर उत्त्तराखंड की जीवन शैली का प्रतिबिम्ब है। हरेला उत्तराखण्ड का एक सांस्कृतिक लोक पर्व और प्रसिद्ध त्योहार है।यह हरियाली और  शांति, समृद्धि, और पर्यावरण संरक्षण के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। यह श्रावण माह में मनाया जाता है हरियाली को समृद्धि से जोड़ा जाता है। पहले यह प्रमुख रूप से उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र मे मनाया जाता था। हरेला बोने के लिए स्वच्छ मिट्टी का उपयोग किया जाता ह।इसमें कुछ जगह घर के आस-पास सुबह से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है। और उसे छानकर टोकरी में जमा लेते हैं। और फिर अनाज डालकर इसे उसे सींचा जाता है। अनाज मे धान, मक्का, उड़द,तिल, और भट्ट शामिल होते हैं। हरेला को घर पर या  देवस्थान पर भी बोया जाता है। घर में किसी मंदिर के पास रखकर 9 दिन तक देखभाल की जाती है। और फिर दसवें दिन घर के बुजुर्ग इसे काटकर अच्छी फसल की कामना के साथ देवताओं को समर्पित करते हैं।और परिवार  बच्चों और छोटों को आशीर्वाद देते हैं।  परन्तु अब यह पूरे प्रदेश मे मनाया जाता है।यह हरियाली और नये...

उत्तराखंड की ज्वलंत समस्यायें

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  त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों का प्रचार-प्रसार चल रहा है, लेकिन इस बार चुनावी घोषणा पत्रों का अभाव सा दिख रहा है, विगत वर्षों में विभिन्न स्तर की सरकारों द्वारा या त्रिस्तरीय पंचायतों द्वारा मूलभूत समस्याओं का निराकरण किया है,चाहे गांव के खड़ंजे,हो या फिर बिजली,पानी,शिक्षा, स्वास्थ्य,इन सेवाओं में भी पहुंच हुई तो है,चाहे पानी की आपूर्ति का सुचारू न रहना,यह समस्या है,साथ ही ग्रामीण स्वास्थ्य में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का अभाव भी है,और यदि हैं,तो कई, समस्याओं से ग्रसित है,इन सब में सुधार‌ की आवश्यकता है, लेकिन सबसे ज्वलंत और चुनौतीपूर्ण जो समस्याये  हैं,  *पलायन* -पलायन किसी भी कारण हो लेकिन आज यह एक सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण विषय बन चुका है, इस चुनौती पूर्ण समस्या के समाधान हेतु सरकारों,प्रतिनिधियों और समाज को चिंतन के साथ-साथ क्रियान्वयन की ओर बढ़ना होगा, ग्रामीणों युवाओं को स्वावलंबन, स्वरोजगार की और प्रेरित करना होगा, भेड़ बकरी पालन, मधुमक्खी पालन बागवानी या कारपेंटर, राजमिस्त्री जैसे कार्यों को करने में युवाओं को संकोच नहीं होना चाहिए, और इन कार्यों को करवाने हेतु युआव...