दिग्विजय दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?When and why was DigvijayDay celebrated?
दिग्विजय दिवस यह दिवस भारत के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा है।11 सितंबर को हर साल दिग्विजय दिवस मनाया जाता है। ये दिन भारत के गौरवशाली इतिहास से जुड़ा रहा है और इस दिन को लोग भारत के अलावा विश्वभर में बहुत गर्व के साथ मनाते हैं। इस दिन जगह-जगह स्वामी विवेकानंद की जीवन शैली पर बात की जाती है,और उनके प्रतिष्ठित भाषण की स्मृतियों को याद किया जाता है। साथ ही युवाओं को उनके विचारों के प्रति जागरूक किया जाता है।
1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द के प्रतिष्ठित भाषण की स्मृति में प्रतिवर्ष 11 सितंबर को दिग्विजय दिवस मनाया जाता है। स्वामी विवेकानन्द ने विश्व धर्म संसद में हिंदू धर्म और भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का एक शक्तिशाली संदेश दिया था। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत ऐसे की।मेरे प्यारे भाइयो और बहनों मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश हूं जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताये लोगों को शरण में रखा है,मै आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं।
यह उत्सव स्वामी विवेकानन्द की आध्यात्मिक विरासत और वैश्विक मंच पर भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका की याद दिलाता है। सार्वभौमिक भाईचारे और धार्मिक सद्भाव का उनका संदेश आज की दुनिया में विशेष महत्व रखता है, जहां धार्मिक संघर्ष और असहिष्णुता अभी भी महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करती हैं। तो वहीं यह दिन स्वामी विवेकानन्द के एकता, सहिष्णुता और स्वीकृति के संदेश का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानन्द की आध्यात्मिक विरासत को श्रद्धांजलि के रूप में भारत में 2010 से दिग्विजय दिवस की शुरुआत की गई थी। इस अवसर पर देशभर में विभिन्न कार्यक्रम और आयोजन किए जाते हैं। विवेकान्द जी का कहना था -उठो, जागो और तब तक न रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए। उनका कहना था कि
यदि स्वयं में विश्वास होता, और अधिक विस्तार से पढ़ाया गया होता, और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता। जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तन हो जाता है,जितना हम दूसरों के साथ अच्छा करते हैं उतना ही हमारा हृदय पवित्र हो जाता है, और भगवान उसमें बसता है।आज भी वे विश्वभर में लोगों और युवाओं के लिए प्रेरणा स्वरुप और पूजनीय हैं।