लोकमाता अहिल्या बाई होलकर को इतिहास में क्यों याद किया जाता है?Ahilyabayee Holkar 2025

 


[31/05, 5:44 am] sr8741002@gmail.com: 

अहिल्याबाई होल्कर का जन्म चौंढी गाँव, अहमदनगर, महाराष्ट्र मे 31 मई 1725 मे मराठा राजवंश साम्राज्य मे हुआ। इनके पिता का नाम मान्कोजी शिंदेऔर माता का नाम सुशीला शिंदे था।मान्कोजी बहुत ही विद्वान पुरुष थे।यही कारण है कि उन्होंने अहिल्याबाई को हमेशा आगे बढने के लिए प्रेरणा दी।उन्होंने अहिल्याबाई को बचपन में ही शिक्षा देना शुरू कर दिया था। उस समय महिलाओं को शिक्षा नहीं दी जाती थी।लेकिन मान्कोजी ने अपनी बेटी को शिक्षा भी दी और अच्छे संस्कार भी दिये।ऐसे घर में पली-बढ़ी अहिल्याबाई बचपन में ही दयाभाव वाली थी,उनकी दयाभाव और आकर्षक छवि ही उनके जीवन को इतनी आकर्षक बनाती है।अहिल्याबाई का विवाह खण्डेराव होलकर से1733मे हुआ।उनके पुत्र नाम मालेराव और पुत्री का नाम मुक्ताबाई था।अहिल्याबाई बचपन में बहुत चंचल और समझदार थी, ऐसे में उनकी शादी बचपन में ही खण्डेराव होलकर के साथ करवा दी गई,उनका विवाह उनकी चंचलता और उनके दया भाव के कारण ही खण्डेराव होलकर के साथ हुई थी।एक बार राजा मल्हार राव होल्कर पुणे जा रहे थे, और उन्होंने चौंढी गाँव में विश्राम किया,उस समय अहिल्याबाई गरीबों की मदद कर रही थी, उनका प्रेम और दयाभाव देखकर मल्हार राव होल्कर ने उनके पिता मान्कोजी से अपने बेटे खण्डेराव होलकर के लिए अहिल्याबाई का हाथ मांग लिया था।उस समय अहिल्याबाई की उम्र महज 8 वर्ष थी, वह 8 वर्ष की आयु में मराठा की रानी बन गई थी। खण्डेराव होलकर उग्र स्वभाव के थे, लेकिन,अहिल्याबाई ने उन्हें एक अच्छे योद्धा बनने के लिए प्रेरित करती था।चूँकि खण्डेराव होलकर भी बहुत छोटे थे और उन्हें अपनी उम्र के अनुसार ज्ञान प्राप्त नहीं था, तो उनके विकास में भी अहिल्याबाई का अहम योगदान रहा।

अहिल्याबाई की शादी के 10 साल बाद यानि 1745 में उन्होंने मालेराव के रूप में पुत्र को जन्म दिया,पुत्र के जन्म के तीन साल बाद 1748 में उन्होंने मुक्ताबाई नाम की पुत्री को जन्म दिया।अहिल्याबाई हमेशा अपने पति को राज कार्य में साथ दिया करती थी।

अहिल्याबाई होल्कर का जीवन काफी सुखमय व्यतीत हो रहा था,लेकिन 1754 में उनके पति खण्डेराव होलकर का देहांत होने के कारण वो टूट गई थी।उनके गुजर जाने के बाद अहिल्या बाई ने संत बनने का विचार किया। जैसे ही उनके इस फैंसले का पता मल्हार राव यानि उनके ससुर को चला तो उन्होंने अहिल्याबाई को अपना फैसला बदलने और अपने राज्य की दुहाई देकर उन्हें संत बनने से रोका।ससुर की बात मानकर अहिल्याबाई ने फिर से अपने राज्य के प्रति सोचते हुए आगे बढ़ी, लेकिन उनकी परेशानियां और उनके दुःख कम होने वाले नहीं थे। 1766 में उनके ससुर और 1767 में उनके बेटे मालेराव की मृत्यु हो गई।अपने पति,बेटे और ससुर को खोने के बाद अब अहिल्याबाई अकेली रह गई थी। और राज्य का कार्यभार अब उनके ऊपर था। राज्य को एक विकसित राज्य बनाने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किये। उनके जीवन में अनेक परेशानियाँ उस समय भी उनका इंतजार कर रही थी।अहिल्याबाई होल्कर को आज देवी के रूप में पूजा जाता है, लोग उन्हें देवी का अवतार मानते है। 

उन्होंने अपने कार्यकाल में भारत के लिए अनेक ऐसे कार्य किये जिनके बारें में कोई राजा भी नहीं सोच सकता था, उस समय उन्होंने भारत के अनेक तीर्थ स्थलों पर मंदिर बनवाएं, वहां तक पहुँचने के लिए उन्होंने मार्ग निर्माण करवाये। कुँए एंव बावड़ी का निर्माण करवाया था,अहिल्याबाई जब शासन में आई उस समय राजाओं द्वारा प्रजा पर अनेक अत्याचार हुआ करते थे, गरीबों को अन्न के लिए तरसाया जाता था, और भूखे प्यासे रखकर उनसे काम करवाया जाता था, उस समय अहिल्याबाई ने गरीबों को अन्न देने की योजना बनाई और वह सफल भी हुई, लेकिन कुछ क्रूर राजाओं ने इसका विरोध किया।

भारत के इंदौर शहर के लिए अहिल्याबाई का एक अलग ही लगाव था। उन्होंने इस शहर के विकास के लिए अपनी काफी पूंजी खर्च की थी, अपने जीवन काल में ही अहिल्याबाई होलकर ने इंदौर शहर को एक बहुत ही सुगम शहर  बना दिया था। यही वजह है की भाद्रपद कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को यहाँ पर अहिल्योउत्सव मनाया जाता है।अहिल्याबाई होल्कर ने अपने जीवन में हिन्दू धर्म उस समय सनातन धर्म के लिए अनेक बड़े कार्य किये, उन्होंने अपने धर्म को अपने मान-सम्मान और राज्य से बड़ा समझा और अपने धर्म के विकास के लिए उन्होंने अपना अहम योगदान दिया अहिल्याबाई होल्कर ने हमेशा अंधियारे को खत्म करने का प्रयास किया, उन्होंने अपने जीवन को दूसरों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया था। एक समय था जब उन्होंने पति की मृत्यु के बाद सब कुछ त्यागने का मन बना लिया था।लेकिन उसके बाद उन्होंने अपने राज्य एंव धर्म के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया।अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु 13 अगस्त 1795 हुई। मृत्यु के बाद आज भी उन्हें अपने अच्छे कार्यों के कारण माता के रूप में पूजा जाता है। उन्हें देवी का अवतार कहा जाता है, उनकी मृत्यु के बाद उनके विश्वसनीय तुकोजीराव होल्कर ने शासन संभाला था,अहिल्याबाई होल्कर भारत सरकार द्वारा सम्मान मे आजादी के बाद अगस्त 1996 को भारत सरकार ने अहिल्याबाई होल्कर को भी सम्मानित किया।और उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किये।और उनके नाम पर अवार्ड भी जारी किया गया है,भारत के अनेक राज्यों में अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा आज भी मौजूद है। और आज भी पाठ्यक्रम में उनके बारें में बताया जाता है।उत्तराखंड सरकार ने उनके नाम पर एक योजना भी शुरू की है इस योजना का नाम ‘अहिल्याबाई होल्कर भेड़-बकरी विकास योजना’ है,

अहिल्याबाई होल्कर ने लोक कल्याण हेतु कर्तव्य सेवा की अहिल्याबाई होल्कर का सबसे मुख्य दान धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण और सुधार था। उन्होंने देश भर में कई मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया, जैसे कि काशी विश्वनाथ मंदिर और सोमनाथ मंदिर. साथ ही, उन्होंने धर्मशालाएँ, घाट, और सड़कें बनवाकर जन कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किए,


धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण:

अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण और रखरखाव पर विशेष ध्यान दिया,अहिल्याबाई होल्कर ने लोक कल्याण हेतु कर्तव्य सेवा की काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर से लेकर उज्जैन के महाकाल तक, गुजरात के सोमनाथ से आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम तक,केदारनाथ से रामेश्वरम,द्वारिका सेलेकर गया तक कई धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण करवाया।

जन कल्याण कार्य:

अहिल्याबाई ने केवल धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उन्होंने धर्मशालाएँ, घाट, कुएँ, बावड़ियाँ, अन्नसत्र, और सड़कों का भी निर्माण करवाया।

सामाजिक सुधार:

अहिल्याबाई ने समाज के सभी वर्गों की भलाई के लिए काम किया, जैसे कि किसानों का लगान कम करना और समाज के हर वर्ग की भलाई के लिए कार्य करना,

 प्रशासनिक क्षमता:

अहिल्याबाई एक कुशल प्रशासक भी थीं, और उन्होंने लगान वसूली, न्याय और प्रजा की समस्याओं का समाधान करने के लिए काम किया,

 धार्मिक स्वतंत्रता:

अहिल्याबाई ने अपने राज्य में धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया और विभिन्न मत-संप्रदायों के बीच सौहार्द बनाए रखा, 

अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण कार्य किए और वे एक आदर्श शासक के रूप में जानी जाती हैं,

अहिल्याबाई होल्कर ने चारों दिशाओं में तीर्थ स्थलों का जीर्णोद्धार और निर्माण कार्य से सनातन संस्कृति को गौरवान्वित किया।और पुनर्स्थापित भी किया।जो सनातन संस्कृति को सदैव गौरवान्वित करते रहेंगे।

लोकमाता अहिल्या बाई होलकर की 300वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 मई 2025 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल आएंगे, यहां वह देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती पर आयोजित महिला सशक्तिकरण महासम्मेलन में हिस्सा लेंगे, इस दौरान पीएम मोदी 300 रुपए का सिक्का जारी करेंगे, ये सिक्का रानी अहिल्या को समर्पित होगा,शुक्रवार को वित्त मंत्रालय ने इस संबंध में आधिकारिक गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया है।

[31/05, 5:51 am] sr8741002@gmail.com:

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