सिन्धु नदी समझोता तोडने से पाकिस्तान की क्या स्थिति होगी?? What is the history of Indus river and Indus riiver Treatly?


सिन्धु नदी का इतिहास:-

 भारतीय धर्म संस्कृति और इतिहास में सिंधु नदी और सिंधी भाषा का बहुत ही महत्व है, भारत का बंटवारा हुआ तो यह सभी पाकिस्तान के हिस्से में चले गए, और फिर इस क्षेत्र के प्राचीन इतिहास, भाषा और संस्कृति को मिटाने का कुचक्र पाकिस्तान ने चलाया परंतु अब पाकिस्तान में भी इस संबंध में एक सोच जागने लगी है कि हमें अपने मूल को भूलना नहीं नहीं चाहिए, और आने वाली पीढ़ी को सच्चे इतिहास से अवगत कराना चाहिए। सिंधु और सरस्वती नदी को भारतीय सभ्यता में सबसे प्राचीन नदी माना जाता है, गंगा से पहले भारतीय संस्कृति में सिंधु नदी  की ही महिमा थी। सिंधु का अर्थ होता है जलराशि, सिंधु के इतिहास के बगैर भारतीय इतिहास की कल्पना नहीं की जा सकती है।सिन्धु नदी एशिया की सबसे लम्बी नदी है। सिंधु नदी 3 देशों में बहती है चीन, भारत, और पाकिस्तान यह नदी लगभग 1976 मील तक बहती है सिंधु नदी बेसिन लगभग 4,50000 वर्ग मील में फैला हुआ है। यह पाकिस्तान,भारत के जम्मू-कश्मीरऔर चीन के पश्चिमी तिब्बत से होकर बहती है।सिन्धु नदी मे बाढ आयी है। 1956,1973,1976,1992,1994,2010,2015,2022 मे। पाकिस्तान हर हमेशा भ्रष्टाचार,कुप्रबन्धन और खराब पर्यावरणीय आपदाओं के कारण पानी मे डूब जाता है।नदियों के जल के वितरण के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच एक सन्धि हुई। जिसका नाम है सिन्धु जल सन्धि है।इस सन्धि पर 19 सितम्बर 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधान मन्त्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूबखान ने हस्ताक्षर किये थे। उस समय विश्व बैंक ने विकास और निर्माण कार्यों हेतु मध्यस्तता की थी। सिन्धु नदी की कुल लम्बाई लगभग 3200 किमी है।सिन्धु नदी प्रणाली मे 6 नदियों के जल को भारत और पाकिस्तान के बीच साझा किया गया हैं।जिनमे पूर्वी नदियों ब्यास,रावी और सतलुज का नियन्त्रण भारत को तथा पश्चिमी नदियों सिन्धु,चिनाब और झेलम का नियन्त्रण पाकिस्तान को दिया है। सिन्धु जल संन्धि के अनुसार भारत के पास इन बहती हुई नदियों के पानी से बिजली बनाने का अधिकार है लेकिन पानी को रोकने और नदियों की धारा बदलने का अधिकार नहीं है।साथ ही बाढ सुरक्षा,या बाढ नियन्त्रण मे किसी भी योजना को क्रियान्वित करने मे प्रत्येक देश एक दूसरे को बचायेगा।और एक दूसरे को कोई क्षति नहीं पहुँचायेगा। भारत इस प्रणाली से 20 प्रतिशत पानी का उपयोग कर सकता है।रावी नदी भारत ओर पाकिस्तान को अलग करती है।यह हिमांचल प्रदेश मे हिमालय से निकलती है।तथा पाकिस्तान की सिन्धु नदी से होते हुए अरब सागर मे गिरती है।

सिंधु जल संधि क्या है?
भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर, 1960 को हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को सीमा पार जल बंटवारे का एक प्रमुख उदाहरण माना जाता है। नौ साल की बातचीत के बाद विश्व बैंक द्वारा इसकी मध्यस्थता की गई थी और साझा नदियों के प्रबंधन के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।

सिंधु जल संधि कैसे काम करती है?
समझौते के अनुसार, भारत का पूर्वी नदियों- रावी, ब्यास और सतलुज पर नियंत्रण है, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब से पानी मिलता है। हालांकि यह संतुलित लग सकता है, लेकिन इस संधि से पाकिस्तान को ज़्यादा फ़ायदा होता है, क्योंकि उसे कुल जल प्रवाह का लगभग 80% मिलता है। ये नदियां पाकिस्तान में कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं , खासकर पंजाब और सिंध प्रांतों में।

इस संधि ने सिंधु नदी प्रणाली के निष्पक्ष और सहकारी प्रबंधन के लिए एक रूपरेखा तैयार की , जो भारत और पाकिस्तान दोनों में कृषि, पेयजल और उद्योग के लिए आवश्यक है। इसने नदी और उसकी सहायक नदियों के न्यायसंगत बंटवारे के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों को रेखांकित किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोनों देश अपनी पानी की ज़रूरतों को पूरा कर सकें। संधि ने भारत को पूर्वी नदियों- रावी, व्यास और सतलुज पर नियंत्रण दिया, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियां- सिंधु, झेलम और चिनाब दी गईं। हालांकि, दोनों देशों को सिंचाई और बिजली उत्पादन जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिए एक-दूसरे को सौंपी गई नदियों के सीमित उपयोग की अनुमति है।

संधि की आवश्यकता क्यों पड़ी?
जब 1947 में ब्रिटिश भारत का विभाजन हुआ, तो सिंधु नदी प्रणाली – जो तिब्बत से शुरू होती है और भारत और पाकिस्तान दोनों से होकर बहती है, अफ़गानिस्तान और चीन के कुछ हिस्सों को भी छूती है – तनाव का स्रोत बन गई। 1948 में, भारत ने अस्थायी रूप से पाकिस्तान को पानी का प्रवाह रोक दिया, जिसके कारण पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष इस मुद्दे को उठाया। संयुक्त राष्ट्र ने एक तटस्थ तीसरे पक्ष को शामिल करने की सिफारिश की, जिससे विश्व बैंक को हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित किया।

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वर्षों की बातचीत के बाद, अंततः 1960 में भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने महत्वपूर्ण नदी प्रणाली को शांतिपूर्ण ढंग से प्रबंधित करने और साझा करने के लिए सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए।

सिंधु जल संधि के निलंबन का पाकिस्तान पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
संधि के निलंबन से पाकिस्तान पर काफी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यह समझौता सिंधु नदी प्रणाली और उसकी सहायक नदियों से पानी के उपयोग और आवंटन को नियंत्रित करता है, जो पाकिस्तान की जल आवश्यकताओं और कृषि क्षेत्र के लिए आवश्यक है। सिंधु नदी नेटवर्क, जिसमें झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज नदियां शामिल हैं, पाकिस्तान के प्रमुख जल संसाधन के रूप में कार्य करता है, जो करोड़ों की आबादी का भरण-पोषण करता है। पाकिस्तान सिंचाई, खेती और पेयजल के लिए काफी हद तक इसी जल आपूर्ति पर निर्भर है।

कृषि क्षेत्र पाकिस्तान की राष्ट्रीय आय में 23% का योगदान देता है तथा इसके 68% ग्रामीण निवासियों का भरण-पोषण करता है।

सिंधु बेसिन प्रतिवर्ष 154.3 मिलियन एकड़ फीट पानी की आपूर्ति करता है, जो व्यापक कृषि क्षेत्रों की सिंचाई और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। जल प्रवाह में किसी भी प्रकार की रुकावट से पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा, जो उसकी अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आजीविका का एक महत्वपूर्ण घटक है।जल की उपलब्धता में कमी से संभवतः कृषि पर निर्भर ग्रामीण क्षेत्रों में फसल की पैदावार में कमी, खाद्यान्न की कमी और आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न होगी।

पाकिस्तान पहले से ही गंभीर संकट का सामना कर रहा है। जल प्रबंधन भूजल की कमी, कृषि भूमि का लवणीकरण, तथा सीमित जल भंडारण क्षमता जैसे मुद्दे।देश की जल भंडारण क्षमता कम है, मंगला और तरबेला जैसे प्रमुख बांधों का सम्मिलित जल भंडारण केवल 14.4 एमएएफ है, जो संधि के तहत पाकिस्तान के वार्षिक जल हिस्से का केवल 10% है।इस निलंबन से गारंटीकृत जल आपूर्ति में कटौती होने से ये कमजोरियां और बढ़ जाएंगी, जिससे पाकिस्तान के पास अपनी जल आवश्यकताओं के प्रबंधन के लिए कम विकल्प बचेंगे।और पाकिस्तान के लिए विद्युत उत्पादन,पेयजल संकट, सिंचाई संकट गहरा जायेंगे उसकी कृषि आधारित आर्थिक स्थिति बुरी तरह गहरा जायेगी और पटरी से उतर जायेगी।आम जन जीवन भी बहुत प्रभावित हो जाएगा।

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