जानिए जंगलों मे आग लगने से कितना बडा़ नुकसान होता है? Damage from fire

 


जंगलों में लगने वाली आग से जैव विविधता,प्रकृति और सम्पूर्ण जीव जगत को बहुत बडा़ नुकसान पहुंँचता है। बहुत से वन्य जीव -जंतुओं ,पक्षियों को भी अपनी जान गंवानी पड़ती है।
उनके नये,घोसलों,अण्डो,नवजात बच्चों सहित खुद की भी जान चली जाती है। भीषण अग्नि से अनेक प्रजातियों, जीव-जंतुओं,और वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने की आशंका हो जाती है। जिससे बहुत समय तक पारिस्थितिकीय संकट उत्पन्न हो सकता है।और कार्बन श्रृंखला टूटने का भी खतरा बढ़ जाता है। जंगल की आग में कई जानवरों की मौत हो जाती है वहीं कुछ जानवरों के आवास नष्ट हो जाते हैं। 
जिससे वे शहरों और गांवों की ओर भागने लगते हैं। उच्च तीव्रता वाली जंगल की आग वनस्पतियों और जीवों के जीवन को नष्ट कर देती है।जंगल की आग अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है, क्योंकि कई परिवारों और समुदाय का भोजन,चारा, रोजगार,और ईंधन के लिए वे जंगल पर निर्भर रहते हैं।

 इसके साथ-साथ वातावरण में व्याप्त उच्च तापमान शुष्कता, निम्न आद्रता हवा की तेज और भूमि का ढालू होना जंगल की आग के फैलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो बहुत बडी़ मात्रा मे नुकसान करता है।आज लगातार जंगलों में आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी होती जा रही है इसमें प्रमुख रूप से जंगलों में बढ़ते कचरे के ढेर, की समय-समय पर साफ सफाई का न होना, यदि सफाई हो तो कुछ हद तक आग की बढ़ती घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है। तेजी से बदलते मौसम, जंगलों में आग लगने की घटनाओं के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। कम बारिश का होना, गर्म हवाओं यानी लू का ज्यादा चलना, और भीषण गर्मी जंगल में आग के लिए जिम्मेदार है। 

इसके साथ-साथ स्थानीय लोगों द्वारा कृषि भूमि की सफाई करते समय, सड़क पर कौल तार के काम करने से, बिजली के तारों के टूटने से, पर्यटकों या ग्रामीणों द्वारा बीडी,सिगरेट माचिस की जलती तिल्ली आदि को लापरवाही से जंगल में फेंकने से वनाग्नि के फैलने की अधिकांश घटनायें होती जा रही है। जंगल की आग के धुएं से ओजोन परत को भी नुकसान होता है,और इससे कैंसर और सांस की बीमारियों का खतरा पूरी दुनिया में बढ़ जाता है। 
उत्तराखंड जैसे राज्य मे सुलगती धरती, पहाड़ी जंगलों का पर्यावरण और पारिस्थितिकीय तंत्र पर बडा़ प्रभाव पड़ता है।पहाड़ों के जंगल में आग लगने की घटनाओं से हर साल बड़ी संख्या में पेड़ों, जीव- जंतुओं,और पर्यावरण को बडा़ नुकसान पहुंचता है।वहीं वायु प्रदूषण भी बढ़ जाता है।पानी के स्रोत सूख जाते हैं,जिससे मानव और जीव जन्तु पेयजल हेतु दर- दर भटकते हैं।पहाडो़ मे ढलान होने के कारण,बरसात मे बडी़ मात्रा मे लैण्ड स्लाइड होता है। बाढ के साथ-साथ बडी़ मात्रा मे मिट्टी बहती है।और बहुत बडी़ मात्रा मे आर्थिक,पर्यावरणीय, नुकसान होता है।

 इसलिए यह सब चिन्ता मानव जगत को ही करनी है।हमे,आग लगने से क्या-क्या नुकसान होता है। इस हेतु जन जागरण,सामाजिक जागगरुकता,वनपंचायत,ग्राम पंचायत,वन विभाग,आदि संस्थाओं  को सहयोग करना चाहिए।यह सहयोग करने से हम मानव जगत, सम्पूर्ण जीव जगत,सभी के सुखी भविष्य,और सम्पूर्ण,पारिस्थितिकीय जगत,के लिए पुण्य के भागीदार बन सकते हैं।

[5/22, 9:31 PM] sr8741002 @gmail.com: 2025 में, उत्तराखंड में अब तक, गढ़वाल मंडल में 93 आग लगने की घटनाएं हुई हैं, जिनमें 101.58 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए हैं, जबकि कुमाऊं में 62 घटनाएं हुई हैं, जिनमें 83.26 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए हैं,इसके अलावा, वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र में 11 आग लगने की घटनाएं हुई हैं, जिनमें 12.005 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए हैं,
[5/22, 9:32 PM] sr8741002 @gmail.com: गढ़वाल मंडल में 93 आग लगने की घटनाओं में 101.58 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए हैं, जबकि कुमाऊं में 62 घटनाओं में 83.26 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए हैं. वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र में 11 आग लगने की घटनाओं में 12.005 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए हैं,
 एक नवंबर 2024 से 20 मार्च 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, देश भर में 81405 आग लगने की घटनाएं हुई हैं,उत्तराखंड के लिए कुल 1347 अलर्ट जारी हुए हैं, 2024 में जंगल की आग की संख्या 20-वर्ष के औसत का लगभग 90% थी, लेकिन जलाया गया कुल एकड़ 20-वर्ष के औसत से 26% अधिक था।

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