महारानी दुर्गावती भारतीय इतिहास की वीरांगना Maharani Durgawati
महारानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को चन्देल वंश के महाराजा शालीवाहन कीर्तिवर्मनसिंहदेव चन्देल के घर हुआ था।(कीर्तिवर्मन ने 1531ई मे कालिंजर के युद्ध मे हुमायूं को हराया था।22मई 1545 ई को कालिंजर के ही युद्ध मे शेरशाह सूरी को तोप से उडा़या था।ये चन्देल वंश के वंशज थे। जिन्होने खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मन्दिरों को बनवाया) दुर्गावती भारत की एक प्रसिद्ध चन्देल क्षत्राणी वीरांगना थी।जिनका जन्म 5अक्टूबर1524 दुर्गाष्टमी को हुआ था।18 वर्ष मे दुर्गावती का विवाह गढाराज्य के राजा संग्रामशाह मरावी के गोद लिए पुत्र दलपतशाह मरावी से हुआ।संग्राम शाह ने भी मुगलों से कई युद्ध किये।
शादी के छः साल बाद 1548 ई मे दलपत शाह की किसी बीमारी के कारण मृत्यु हो गयी।और महारानी दुर्गावती ने फिर गढाराज्य सम्भाला। रानी दुर्गावती ने अपने राज्य की सीमाओं को सुदृढ किया। विद्रोहियों को कुचलने के लिए उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर अपनी सेना का नेतृत्व किया था।उनका राज्य पूर्व से पश्चिम तक 300 मील और उत्तर से दक्षिण तक 160 मील के क्षेत्र में फैला हुआ था। उसमें नगर शहर, और मजबूत किले शामिल थे। यहां की आबादी में मुख्य रूप से गोंड जनजाति के लोग शामिल थे। जो गांवों में रहते थे।
कुल 23000 गांवों में से लगभग 12000 गाँव सीधे रानी की अधीन थे। जबकि बाकी उनके जागीरदारों के अधीन थे। 20000 घुड़सवारों 1000 युद्ध के हाथियों और पैदल सैनिकों की मजबूत टुकड़ी से उनकी सेना लैस थी। वे इस सेना की मदद से इन सब पर नियंत्रण स्थापित किया करती थी। अपने राज्य के एकीकरण के कारण रानी मुगल साम्राज्य के नजदीक आ गई। मुगल सम्राट अकबर अपने राज्य के विस्तार की तैयारी में लगे थे 1562 में अकबर ने बाज बहादुर को पराजित किया।और मालवा को मुगल साम्राज्य का हिस्सा बनाया। जल्द ही मुग़ल सेनापतियों ने रेवा और पन्ना के राज्यों पर भी कब्जा कर लिया।और रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला करने की तैयारी कर रहे थे। मालवा और अन्य राज्यों से मुसलिम बराबर हमले करते थे।मालवा के बाजबहादुर ने कई हमले गोंडा राज्य पर किये पर वह हर बार हारता रहा।मुगलशासक अकबर भी गोंडा राज्य को जीतकर रानी दुर्गावती को अपने हरम मे डालना चाहता था। और उसने विवाद प्रारंभ कर दिये उसने विवाद प्रारंभ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन )और उसके विश्वस्त बजीर आधार सिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी दुर्गावती ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। इस पर भंड़ककर अकबर ने आसफ खाँ के नेतृत्व में गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया।
रानी दुर्गावती और उसकी सेना ने डटकर सामना किया। और आसफ खाँ को पराजित कर दिया। अगली बार फिर अकबर ने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला कर दिया। रानी दुर्गावती के पास उनके मुकाबले कम सैनिक थे। जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया।तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया।भयंकर युद्ध हुआ।रानी अपने पसन्दीदा हाथी समरन पर सवार हुई।उनका पुत्र नारायण भी सवार हुआ।तीन बार मुगल सेना को पीछे धकेला। इस युद्ध मे अकबर के 300 से ज्यादा सैनिक मारे गये।अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। रानी का पक्ष आज कमजोर धा। युद्ध हुआ।नारायण इस यूद्ध मे घायल हो गया।अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को किसी सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। युद्ध मे रानी का एक तीर भुजा पर लगी।रानी ने उसे निकाल दिया।तभी दूसरा तीर रानी के आँख मे लगी रानी ने उसे भी निकाल दिया मगर तीर की नोंक आँख मे ही रह गयी।तभी तीसरा तीर उनके गर्दन मे लगकर धँस गयी।रानी दुर्गावती ने अंतिम समय निकट जानकर बजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे।पर बजीर इसके लिए राजी नहीं हुआ।अतः रानी ने स्वयं अपनी कटार अपने सीने पर घोंपकर आत्म बलिदान कर दिया।रानी दुर्गावती ने किसी और की सत्ता के कदम छूना पसन्द नहीं किया। और आत्म बलिदान करना श्रेष्ठ समझा।अकबर के इतिहासकार अबुल फजल ने दुर्गावती के बारे लिखा कि वह उच्च संस्कारित चरित्रवान सुन्दरता,अनुग्रह,मर्दाना,साहस,और बहादुरी का एक मेल थी।एक अंग्रेज सेना अधिकारी ने लिखा है कि महारानी दुर्गावती उत्तम शासक और भारतीय संस्कृति का परिचायक थी।उन्होने अकबर के सेनापति आसफखान से भयंकर युद्ध किया। इन युद्धों से पहले दुर्गावती ने 15 वषों तक शासन किया था। और इन वर्षों मे रानी दुर्गावती ने मुगलों सहित कई आक्रमणकारियों से 51 युद्ध लडे़।जबलपुर मे जहाँ यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ।वह स्थान बरेला है।वहाँ पर रानी की समाधि है।जहाँ गोण्ड जनजाति के लोग जाकर रानी को अपने श्रद्धासुमनअर्पित करते हैं।जबलपुर मे रानी दुर्गावती के नाम से रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय है।रानी दुर्गावती के सम्मान मे 24 जून1988 को भारत सरकार ने उन पर एक डाक टिकट जारी किया।उनके नाम से संग्रहालय,और अन्य महाविद्यालय भी हैं।कई शासकीय इमारतों का नाम भी उनके नाम है।इस प्रकार रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास मे अमर रहेगी।