इतिहास मे ऊषा मेहता

25 मार्च 1920 को गुजरात  के सूरत में उषा मेहता का जन्म हुआ था। जब वह छोटी थी तो उनके गांव में एक बार गांधी जी की सभा हुई । और वह गांधी जी के विचारों  इतनी प्रभावित हुई कि उनके मन में क्रान्ति की ज्वाला भड़क गई। और उन्होंने सभी सुख, सुविधाओं का त्याग करते हुए। अपने पिता से कहा है कि वह आगे की पढ़ाई अभी नहीं करेगी। क्योंकि उन्हें देश को आजाद कराने के लिए बाहर आना होगा। 


उषा मेहता ने 8 साल की उम्र में साइमन के विरोध में आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे कैम्प में जाकर खादी का कपड़ा बनाना सीखा और उसे पहना भी। उनका पहला नारा था। साइमन वापस जाओ! 1930 में जब उनके पिता जज के पद से रिटायर हुए तो उनका परिवार मुंबई में आ गया।और फिर उन्होंने अपनी पढ़ाई शुरू की। यहां पर उषा अपने रिश्तेदारों को चिट्ठी भेजने के


 बहाने से घर से बाहर आकर क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल होने लगी। उन्होने दर्शनशास्त्र से स्नातक किया। और कानून की पढ़ाई शुरू की। जब अंग्रेजों ने भारत में विभाजन की बात कही तब देशभर में तनाव का माहौल पैदा हो गया। उस वक्त बापू ने ब्रिटिश शासन से देश को आजाद कराने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था। जिसमें पूरे देश ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेजी हुकूमत ने 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी समेत सभी  बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया। इतना ही नहीं


 उन्होंने भारत में चलने वाले सभी रेडियो ब्रॉडकास्टिंग लाइसेंस को रद्द कर दिये। फिर कुछ नेताओं ने निर्णय लिया और नानक मोटवानी की मदद से एक रेडियो का प्रसारण किया। सबसे पहला रेडियो प्रसारण 27 अगस्त 1942 को मुंबई के चौपाटी से हुई। इस आवाज में उन्होंने कहा आप सुन रहे हैं 41.78 मीटर बैंड पर एक अनजान जगह से प्रसारित किया जा रहा है। इंडियन नेशनल कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर देश मे अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ  रेडिओ प्रसारण के जगह को हर दिन बदल दिया जाता था। ताकि ब्रिटिश हुकूमत उन तक पहुंच न सके। अंग्रेजों से बचने के लिए 3 महीने तक चलने वाली रेडियो स्टेशन को सात अलग-अलग जगहों से प्रसारित किया गया। इस रेडियो का


 प्रसारण के 28 दिनों के बाद पुलिस ने ऊषा मेहता समेत तीन और अन्य लोगों को पकड़ लिया। और उन्हें 4 साल की सजा सुनाते हुए जेल में बंद कर दिया। जेल में उनकी सेहत खराब होने लगी। और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा। किसी तरह 4 साल की सजा खत्म हुई और वह 1946 को जेल से रिहा हुई। जेल से रिहा होने के बाद भी ऊषा मेहता ने अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए। उनका फिर से भारत की आजादी के लिए आन्दोलन और संघर्ष


 अंतिम सांस तक चलता रहा। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद होने के बाद वह महिला उत्थान और समाज की उन्नति में लग गई। इस नेता को भारत सरकार ने 1998 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।और 11 अगस्त 2000 को इस महान स्वतन्त्रता सेनानी का स्वर्गवास हुआ।भारत की स्वतंत्रता के लिए उनको हमेशा याद किया जायेगा।

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